अष्टम स्वरूप, मां महागौरी,इनकी पूजा से पाएं मनवांछित फल।
नवरात्र में अष्टमी को मां भगवती के अष्टम स्वरूप मां महागौरी की पूजा की जाती है।माता महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजा अर्चना करने से भक्तों का कल्याण होता है। जगदम्बा मां महागौरी की कृपा से दिव्य सिद्धियों की प्राप्ति होती है।मां महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती है। माता की आराधना से भक्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।
मां महागौरी का वर्ण गौर अर्थात् गोरा है तथा उनके वस्त्र एवम् आभूषण भी स्वेत हैं।माता का वहां वृषभ (बैल) है।मां महागौरी की चार भुजाएं हैं।माता के दाहिने तरफ के ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में डमरू और नीचे का बायां हाथ वर-मुद्रा में हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत एवम् सौम्य है। यही महागौरी देवताओं की प्रार्थना पर हिमालय की श्रृंखला मे शाकंभरी के नाम से प्रकट हुई थी।
कथा के अनुसार एक बार भगवान भोलेनाथ की किसी बात से आहत होकर मां पार्वती हिमालय में दूर कही जाकर तपस्या में लीन हो जाती हैं।तपस्या करने के दौरान एक सिंह(शेर) वहां पहुंच जाता है जो की बहुत दिनों से भूखा था।किंतु मां पार्वती को तपस्या में लीन देखकर खाने से पहले उनकी तपस्या पूरी होने की प्रतीक्षा करता है। अनेक वर्षों तक प्रतीक्षा करने से सिंह मृतप्रायः हो जाता है। अनेक वर्षों तक मां पार्वती को नहीं पाकर भगवान भोलेनाथ उनको खोजने निकलते है।भगवान भोलेनाथ जब खोजते हुए मां पार्वती के पास पहुंचते है तब मां को देख कर आश्चर्यचकित रह जाते हैं।पार्वती जी का रंग अत्यंत अभापूर्ण होता है, जिसमे चांदनी के सामन शीतल तथा शरीर कुन्द के फूल के समान उजला दिख रहा होता है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।
मां पार्वती सिंह की तपस्या( प्रतीक्षा) से खुश होकर उसको अपना वाहन बना लेती हैं।महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। माता का ध्यान करने से मनुष्य का चित्त सत् के मार्ग की ओर अग्रसित होता है तथा मानसिक शांति मिलती है।
मां की भक्ति के लिए श्लोक,
।।या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात् हे देवी आप सभी प्राणियों में विराजमान है तथा मां गौरी के रूप में स्थापित है। हम आपको बारंबार प्रणाम करते हैं। आपकी जय हो।
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