दूसरा स्वरूप: मां ब्रह्मचारिणी

 


नवरात्र में मां दुर्गा का दूसरे दिन में मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप में पूजा जाता है।देवी पुराण के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी हमेशा साधना में लीन रहती हैं जिसकी वजह से देवी का तेज बढ़ा हुआ है। अधिक तेज होने के कारण माता का वर्ण गौर (गोरा) है।इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।माता को सफेद रंग अत्यधिक प्रिय है।माता का कोई वाहन नहीं है माता अपने पैरों से चलती है। 

देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें  ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल ग्रहण किया तथा सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। 

इन्होंने दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और तेज धूप के कष्ट सहन किया। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र ग्रहण करना भी त्याग  दिया। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। 

कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व तप बताया तथा उनकी सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह आपके द्वारा ही संभव था। आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान भोलेनाथ शिवजी आपको पति रूप में प्राप्त होंगे।

माता के जीवन से हमे यह शिक्षा मिलती है की विपरीत परिस्थितियों में भी हमे अपने लक्ष्य से विचलित नहीं होना चाहिए तथा लक्ष्यप्राप्ति तक संघर्ष करते रहना चाहिए।

 माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए इस श्लोक को कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।

।।या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्यये नमो नमः।।

अर्थ : हे देवी सभी जीवों में विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध मां आपको मेरा बारंबार प्रणाम है।आपकी जय हो।

माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।

इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनके जीवन  में सफलता मिल सके तथा जीवन में  किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।


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